Lai Taal | Kailash Vajpeyi
11 November 2025

Lai Taal | Kailash Vajpeyi

Pratidin Ek Kavita

About

लयताल।कैलाश वाजपेयी


कुछ मत चाहो


दर्द बढ़ेगा

ऊबो और उदास रहो।


आगे पीछे

एक अनिश्चय


एक अनीहा, एक वहम

टूट बिखरने वाले मन के


लिए व्यर्थ है कोई क्रम

चक्राकार अंगार उगलते


पथरीले आकाश तले

कुछ मत चाहो दर्द बढ़ेगा


ऊबो और

उदास रहो


यह अनुर्वरा पितृभूमि है

धूप


झलकती है पानी

खोज रही खोखली


सीपियों में

चाँदी हर नादानी।


ये जन्मांध दिशाएँ दें

आवाज़


तुम्हें इससे पहले

रहने दो


विदेह ये सपने

बुझी व्यथा को आग न दो


तम के मरुस्थल में तुम

मणि से अपनी


यों अलगाए

जैसे आग लगे आँगन में


बच्चा सोया रह जाए

अब जब अनस्तित्व की दूरी


नाप चुकीं असफलताएँ

यही विसर्जन कर दो


यह क्षण

गहरे डूबो साँस न लो


कुछ मत चाहो

दर्द बढ़ेगा


ऊबो और

उदास रहो