
About
घर में वापसी । धूमिल
मेरे घर में पाँच जोड़ी आँखें हैं
माँ की आँखें पड़ाव से पहले ही
तीर्थ-यात्रा की बस के
दो पंचर पहिए हैं।
पिता की आँखें—
लोहसाँय की ठंडी सलाख़ें हैं
बेटी की आँखें मंदिर में दीवट पर
जलते घी के
दो दिए हैं।
पत्नी की आँखें आँखें नहीं
हाथ हैं, जो मुझे थामे हुए हैं
वैसे हम स्वजन हैं, क़रीब हैं
बीच की दीवार के दोनों ओर
क्योंकि हम पेशेवर ग़रीब हैं।
रिश्ते हैं; लेकिन खुलते नहीं हैं
और हम अपने ख़ून में इतना भी लोहा
नहीं पाते,
कि हम उससे एक ताली बनवाते
और भाषा के भुन्ना-सी ताले को खोलते
रिश्तों को सोचते हुए
आपस में प्यार से बोलते,
कहते कि ये पिता हैं,
यह प्यारी माँ है, यह मेरी बेटी है
पत्नी को थोड़ा अलग
करते - तू मेरी
हमसफ़र है,
हम थोड़ा जोखिम उठाते
दीवार पर हाथ रखते और कहते
यह मेरा घर है।