एक तरफ़ है मानवता और दूसरी तरफ़ है वर्चस्व की लड़ाई, बड़ा और बड़ा बनने की सनक ने मचाई चारों तरफ़ तबाही।लड़ाई और युद्ध किसी भी समस्या का हल हो सकता है क्या? युद्ध से सिर्फ़ विनाश और विध्वंस हो सकता है, किसी भी हिंसा का शिकार एक परिवार होता है जो कि अपने चहेतों को खोकर इसकी कीमत चुकाता है।चोट की पीड़ा कितनी गहरी होती है ,इस बात का एहसास तभी होता है जब वो खुद को लगती है, किसी अपने को खो देने का गम या बिझड़ जाने का गम पूरे जीवन भर कचोटता है, ये हम तब ही जान पाते है जब खुद उस दुःख से रूबरू हुए हो।इसलिए कोई भी फैसला लेने से पहले ये जरूर सोचा जाना चाहिए कि इसका प्रभाव हम पर, हमारे परिवार पर, हमारे समाज पर, हमारे देश पर और पूरे विश्व पर क्या पड़ेगा।