'गज़ल-ए-कौशल'
'गज़ल-ए-कौशल'

'गज़ल-ए-कौशल'

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मुझे किसी ख्याल में खो जाना और खोए हुए किसी और ख्याल के हो जाना पसंद आता है।
मैंने शब्दों को जादू करते करीब से देखा है।
बहुत करीब से देखा है पंक्ति दो पंक्ति को कोलाहल मचाते।
देखा है बड़े शायर के पीछे किसी हुजूम का तालियां बजाते बजाते लुट जाना।

एक नशा है
और मैं अपने लिए ऐसे ही नशे की दुनिया बना रहा हूं।
आप भी इसमें बिना किराया बिना कर्ज़ साथ हो सकते हैं।

बस आपको एक 'आह' में "वाह कौशल" कहते जाना है।

_____"कौशल"।।